मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 27 नवंबर 2016

टूना जूठन साफ़ करता है लेकिन सरकार की शिकायत नहीं करता.

पिछले दिनों झारखण्ड सरकार की छात्रवृति योजना पर मैंने स्टोरी की थी। उसी समय जमीनी हकीकत जानने आदिवासी हॉस्टल गया था तो पता चला हज़ारों ऐसे छात्र हैं जिन्हें पिछले 3 साल से छात्रवृति नहीं मिली है। छात्रवृति नहीं मिलने से छात्र परेशान थे कई तो पैसे की कमी के कारण आगे क्लास में एड्मिसन तक नहीं ले सके थे क्योंकि ज्यादातर छात्र के माता-पिता निम्न आय श्रोत वाले थे। सबने कहा था भैया पैसा दिलवा दीजिये बहुत मदद होगा। सम्बंधित मंत्री से बात करने पर पता चला की विभाग के पास बजट ही नहीं है
आज एक फैमली फंक्सन में रांची के एक होटल में गया था। होटल का ड्रेस पहने एक वेटर कोल्डड्रिंक सर्व कर रहा था। जब वो मेरे पास आया तो मुस्कुराया लेकिन मुझसे नजरें नहीं मिला पाया। मुझे लगा मैंने उसे कहीं देखा है। लेकिन पहचान नहीं पाया। वो फिर कुछ लेकर मेरे पास आया तो मैंने ऐसे ही पूछ दिया और क्या हाल है ? फिर मुस्कुराया और बोला ठीक है भैया..... सरहुल में हॉस्टल आइयेगा..... तभी मुझे याद आया अरे ये तो टूना उराँव है। वो वही आदिवासी हॉस्टल का लड़का था जिसने मुझसे कहा था भैया पापा नहीं है... पूरा घर हमी को देखना पड़ता है फिर भी छात्रवृति नहीं मिलता है। सच पूछिये तो छात्रों को छात्रवृति नहीं मिलने से होने वाली सही तकलीफ मैं उस वक्त महसूस ही नहीं कर पाया था.... लेकिन टूना को जूठा बर्तन उठाते देख एक झटके में समझ आ गया। समझ आ गया कि दिल्ली से हवाई जहाज से आकर कोई मंत्री एड्मिसन के नाम पर सुर्खियां बटोर सकती है लेकिन उसी दिन टूना झारखण्ड की हकीकत बता रहा था।
टूना को देख अपने व्यवस्था पर तरस तो आ रहा था लेकिन इस नौजवान को देख फक्र भी हो रहा था। क्योंकि कठिन परिस्थिति में भी उसने गलत राह को नहीं चुना।

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