मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 27 नवंबर 2016

साईकिल की सवारी !

नई साईकिल के साथ पहली तस्वीर. 
साईकिल ख़रीदे और उससे ऑफिस जाते एक महीने का वक्त बीत गया। मतलब मेरी साईकिल का मंथली वाला हैप्पी बर्थडे है। सच पूछिए तो एक महीने बाद अब बाइक से ऑफिस जाने का जरा भी मन नहीं करता क्योंकि जो आनंद हल्के साउंड में विविध भारती सुनते सड़क किनारे साईकिल चलाने में है वो रफ़्तार से गुजरने में जरा भी नहीं। साईकिल से प्रेम मेरा नया नहीं बल्कि बचपन से रहा है। मुझे याद है गाँव का हरक्यूलस का वो साईकिल जिसमें ब्रेक नहीं था फिर भी वो मेरा सच्चा साथी था। जिससे हर काम करता था। साईकिल से जुड़ी मुझे एक दिलचस्प बात याद है। एक दिन की बात है। दोपहर का समय था। अपने घर के बाहर से मैंने देखा कि कुछ लोग दर्जीपट्टी की तरफ भागे चले जा रहे हैं। मैं भी साईकिल दौड़ाया और वहां पहुंचा। जाने पर देखा कि एक लड़के को साँप काट लिया है। गाँव के लोग उसे चार पहिये वाला ठेले से अस्पताल ले जा रहे थे। जब मैं पहुंचा तो कुछ लोगों ने कहा इसके साईकिल पर बैठा दो बहुत स्पीड चलाता है तुरंत अस्पताल पहुंचा देगा। फिर सबने उसे मेरे साईकिल के पीछे बैठाया और गमछी से मेरे कमर में उसे बांध दिया ताकि बेहोश होने के बाद वो गिरे नहीं। फिर करीब 2 किलोमीटर का सफर उस दिन साईकिल से जितनी स्पीड में गया था उतनी स्पीड में कभी चलाया नहीं था। अस्पताल पहुँचने पर पता चला कि वहां इलाज़ नहीं हो पायेगा फिर उसे दूसरे डॉक्टर के पास साईकिल से ही पहुँचाया। इलाज़ के बाद युवक ठीक हो गया। फिर उसने खस्सी का पार्टी दिया था जिसमें मुझे खासतौर पर बुलाया गया था।
अभी एक महीने के इस धीरे-धीरे वाले सफर में कई लोग मिले।
1. रात के करीब 9.50 बजे किशोरगंज से गुजर रहा था। एक युवक हाथ में कुछ किताब लेकर तेज़ी से पैदल जा रहा था। हम दोनों जब अगल बगल हुए तो उसने मुझसे कहा - लिफ्ट दीजियेगा। मेरा लॉज का गेट 10 बजे बंद हो जाता है। पैदल जाने में लेट हो जायेगा। पहले तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि कोई साईकिल वाले से कैसे लिफ्ट मांग सकता है। फिर मैंने कहा भाई ऐसा है साईकिल के पीछे कैरियर नहीं है। रहता तो उसपर बैठा लेता। और आगे के डंडे की बनावट ऐसी है कि बैठा नहीं सकता। हाँ लेकिन इतना कर सकता हूँ कि आप जहाँ तक चलो बात करते जा सकता हूँ। बात बात में पता चला कि वो पिठोरिया का रहने वाला था। बीटेक करके 6 महीने किसी सीमेंट कंपनी में नौकरी कर चुका है। फिर सरकारी नौकरी के लिए अभी रांची में तैयारी कर रहा है। जाते - जाते लड़का बोलकर गया, मेरा भी नौकरी लगेगा तो हम भी साइकिले से ऑफिस जायेंगे।
2. सुबह के 10 बजने वाले थे। आज पैडल की रफ़्तार तेज़ थी क्योंकि थोड़ा लेट हो चूका था। कचहरी चौक पर एक बाइक वाला उलटे तरफ से आते हुए मेरे साईकिल के पिछले चक्के को ठोक दिया। साईकिल गिर गया गया। मैं चुपचाप साईकिल उठाने लगा। तभी बाइक चला रहा अधेड़ मुझे भला बुरा कहने लगा। मैं चुपचाप आनंद भाई के दिए आईडिया के अनुसार पल को एन्जॉय कर रहा था। जब वो ज्यादा बोलने लगा तो मैं रिएक्ट ही करने वाला था कि बाइक पर पीछे बैठी खूबसूरत युवती कह उठी पापा इसमें तो आपही की गलती है फिर बेचारे को क्यों डांटे जा रहे हो। फिर दोनों निकल गए।


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