आज हरी ओम टावर पर स्टोरी फ़ाइल कर आ रहा हूँ। इसलिए दिमाग में वही है और फिर फेसबुक भी तो पूछ रहा है वाट्स ओन योर माइंड.... कई साल पहले की बात है..... शाम के 7 बज रहे थे..... उससे बिछुड़ने और तकरार के 2 घंटे ही बीते थे..... लालपुर के भीड़ वाले सड़क में भी खुद को अकेला महसूस कर रहा था..... दिमाग में उसके आलावा कुछ नहीं था... तभी चलन था हरी ओम टावर से कूदकर जान देने का..... मैं भी उसी सोच के साथ आगे बढ़ा था.... रास्ते में बजरंगी के दुकान के सामने लगे ठेले में चाय पीने का मन हुआ.... वहीँ सोचा आखरीबार गोल्ड फ्लैक भी मार लेता हूँ.... एक ख़त्म हुआ तुरंत दूसरा सुलगा लिया..... एक हाथ से सिगरेट की कश और और दूसरे से पाण्डेय जी की चाय से दिमाग की नसें तन गई.... रक्त संचार की स्पीड भी बढ़ गई.... तभी कहीं किसी नस के कोने में बैठा सन्देश का एक गठर मेरे दिमाग से टकराया और कहा जो सोच रहे हो वो कर ही लेना उससे पहले कम से कम एकबार सबसे बात तो कर लो..... तभी टाटा इंडिकॉम के छोटे फोन से सबको फ़ोन घूमना शुरू किया.... कई लोग तो इस बात से ही खुश थे कि मैंने कॉल किया है..... दोस्त ऑफिस परिवार के कई सदस्यों से होते हुए मुझे याद है मैंने आखरी कॉल माँ को ही किया था..... हेल्लो बोलते ही उधर से आवाज़ आई - क्या हुआ है ? आवाज़ इतना भारी क्यों लग रहा है..... ठण्ड बहुत है..... स्वेटर टोपी ठीक से पहन रहे हो न...... इतना सुनते ही गुब्बारे की तरह मेरे अंदर के गम का घड़ा फूटा और आँखों से मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.... माँ के वे शब्द मैं अंतिम शब्दों के रूप में ग्रहण कर रहा था...... फोन पर बात करते-करते आगे बढ़ा..... तभी तेज़ रफ़्तार से आ रहे एक बाइक सटाते हुए निकला.... मेरे मुह से निकले चिल्लाहट सुन माँ उस वक्त बैचैन हो उठी थी..... लग रहा था फोन से निकलकर सामने आ जायेगी...... 10 मिनट तक बस कहाँ - कहाँ चोट लगी उसी का विवरण चलता रहा.... तभी माँ ने कहा था - चलो कोई बड़ा ग्रह रहा होगा जो टल गया.... उसके बाद तो जैसे मैं भूल ही गया मैं कहा जा रहा था.....
(काल्पनिक)
फेसबुक पर आई प्रतिक्रिया
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जवाब देंहटाएंlekhni behtareen hai aapka
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