मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 27 नवंबर 2016

झारखण्ड में बाल विवाह !

झारखण्ड में बाल विवाह को लेकर इनदिनों बवाल मचा हुआ है। बीजेपी वालों का मामले में छीछालेदर हो रहा है। पूरा विपक्ष मामला दर्ज करवाने में लगा हुआ है। लेकिन बात सत्ताधारी दल और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष से जुड़ा है इसलिए मामला दर्ज करवाने में सबको इतनी मशक्त करनी पड़ रही है। लेकिन ये देरी ही झारखण्ड की हकीकत है। क्योंकि झारखण्ड में बाल विवाह के मामले दर्ज ही नहीं होते। सीएम किसी बच्ची को बुला के उसके साथ फोटो खिंचवा लें उसकी पीठ थपथपा कर ये भले ही कह दें की 'ठीक है बेटी पहले पढ़ो उसके बाद ही तेरी शादी होगी' लेकिन उनके सिस्टम का यही सच है कि झारखण्ड अलग होने के बाद 2015 में बाल विवाह के खिलाफ पहला FIR दर्ज हुआ था। वो भी मेरी रिपोर्ट पर। उससे पहले पुरे झारखण्ड में कहीं मामला ही दर्ज नहीं हुआ था।
ऐसा नहीं है कि इससे पहले बाल विवाह झारखण्ड में हुआ ही नहीं होगा। मैंने खुद रांची में ही एक बाल विवाह का लाइव रेस्क्यू होते कैमरे में कैद किया था। रांची के एक मिश्रा नाम के अधिकारी VIP लाइट तमाम तामझाम और सभी अधिकारी पुलिस के साथ पहुंचे थे। दूल्हा - दुल्हन को मंडप से उठाकर पुलिस ले गई थी। उसी खबर के बाद मैंने अपने फेसबुक पर एक बकरे की कहानी लिखी थी कि कैसे शादी बीच में रुकने से सब उदास है और बकरी हंस रही है। लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि उस मामले में भी FIR दर्ज नहीं हुआ था। पता करने पर पता चला कि एक बीजेपी विधायक पुरे गाँव के साथ थाना पहुँच गए थे। ये बताने के लिए की लड़की की माँ नहीं है किसी तरह शादी हो रही है छोड़ दीजिये नहीं तो बच्ची की लाइफ बर्बाद हो जायेगी।
दरअसल हकीकत यही है। हम भले ही खुद को स्मार्ट सिटी के लोग समझे लेकिन समाज में अभी भी बेटी बोझ ही समझी जाती है। सब चाहते हैं किसी तरह बेटी को बिहाह दें बाप- चाचा का धर्म नीभ जायेगा। गाँव में कुछ बिहाह कटवा जरूर होते हैं लेकिन ज्यादातर लोग किसी लड़की की शादी में बाधक नहीं बनना चाहते। किसी को कोई मतलब नहीं रहता कि दुल्हन अभी बच्ची है या नाबालिक है। यही वजह है कि झारखण्ड में सिर्फ 5 बाल विवाह के मामले दर्ज हुए हैं। पहला बाल विवाह का जो मामला दर्ज हुआ था वो शादी सीएम आवास के ठीक बगल वाले मंदिर में हुई थी। वहां के कुछ स्थानीय लोग ने मुझे इसकी सूचना देते हुए बताया था कि 10 साल की बच्ची की शादी हो रही है। मैंने सम्बंधित एनजीओ और पुलिस को तुरंत इसकी सूचना दी। थाने से लोग जब जाँच किये तो मामला सही निकला। लड़का और लड़की दोनों नाबालिक थे। जबतक तामझाम के साथ हमलोग पहुँचते तबतक शादी हो चुकी थी। पुलिस और CWC उसके घर पहुंची। दूल्हा - दुल्हन को अलग - अलग रखा गया। लड़का की माँ जो दूसरे के घर जूठा बर्तन धोने का काम करती थी। छाती पीट पीटकर रोने लगी। अपने दुश्मन पड़ोसी जिसने पुलिस को सूचना दी थी उसे कोसने लगी। रोते रोते दो बार बेहोश हो गई। दांती लगने लगा। सभी औरतें दांती छुड़वाने में लग गई। लड़की माँ जब गाली दे रही थी तो लग रहा था मुझे ही गरिया रही है। लेकिन हम चुप थे। शादी का घर मातम में बदल गया। कड़क लेडी पत्रकार अपने अंदाज में बेटे की माँ को समझा रही थी। पुलिस वाले को बार बार ऊपर से फोन आ रहा था कि कहाँ सोये रहते हो तुमलोग। चीफ जस्टिस के घर के पास और सीएम के घर के पास शादी हो गई तुमलोगों को पता भी नहीं चला। बाद में FIR हुआ। शादी कराने वाले पंडित को भी पुलिस खोजने लगी। पंडित जी मंदिर में ताला लगाकर और पोथी लेकर गाँव चले गए। फिर शादी में शामिल लोगों की सूची बनने लगी क्योंकि सेक्शन 9, 10, 11 सब लगाना था। इसलिए धीरे - धीरे बाराती सराती सब नौ दो ग्यारह हो गए।
सन्नी शारद, रांची

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