मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 9 दिसंबर 2012

आखिर पिसता गरीब ही है !


तस्वीर धुंधली है इसलिए पहले थोडा साफ़ कर दे रहा हूँ। साईकिल पर कोयला ढोता गरीब मजबूर और लाचार व्यक्ति। कमीशन मांगता और पीट रहा पुलिस। यह तस्वीर रांची में आयोजित यूथ फेस्टिवल में विनोभाभावे विश्वविध्यालय के छात्रों द्वारा निकाली गयी झांकी की
 है। दरअसल झांकी में वही दिखाया जाता है जो समाज में होता है। यह बिलकुल खुली बात है की कोयले की काली कमाई से झारखण्ड सहित देश के कई रसूखदारों के घर में आज रौनक है। लेकिन पिटता अक्सर साईकिल वाला ही है। पूरा राज्य साईकिल पर कोयले लेकर आने वाला से कोयले की खरीदारी कर खाना बनता है लेकिन फिर उसी खाना को खाकर उस साईकिल वाले को चोर कहा जाता है। हर ढावा और होटल में भट्टी उसी के पसीने से लायी कोयले के बदौलत दहकती है लेकिन जब उसी होटल में मीटिंग होती है तो चोर वही साईकिल वाला कहलाता है। गजब विडम्बना है।
झारखण्ड के गोड्डा जिला में पिछले दिनों वहाँ के एसपी महोदय ने भी कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया। महोदय खुद से साईकिल से कोयले ढोने की कवायद में जुट गए ताकि वे पता कर सके की आखिर कहाँ कहाँ कोयले के ढुलाई के नाम पर चढ़ावा चड़ता है। एसपी महोदय ने इन सभी मामले में सात पुलिस कर्मी को गलत पकड़ा और निलंबित भी कर दिया। एसपी महोदय के ऐसा करने पर पुलिस हरकत में आई और फ़िलहाल गोड्डा के ललमटिया कोयला खदान से साईकिल से कोयले को ढुलाई बंद है। जबकि वो साईकिल वाला भी पैसे की अदायगी करके ही कोयला लता है। अब स्थिति यह है की आस पड़ोस के सैकड़ों गाँव में हाहाकार मचा हुआ है। कई घरों में खाना नहीं बन रहा है। क्यूंकि ज्यादातर के घरों में उसी साईकिल से आने वाले कोयले से आँच लगती थी। मामला बड़ा है लेकिन एसपी साहब तीर मारकर सोये हैं। क्यूंकि उनके घर में सरकारी कोटे से गैस के सिलेंडर आते हैं। अब सवाल है की गोड्डा जिले का आदमी क्या करे ? क्या वह अपने आँखों के सामने अपना संसाधन दुसरे जगह जाने दे या भूखे पेट सोये या फिर अब तक बन्दुक से दूर रहा गोड्डा भी उसी राह पर चले ?