मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 27 नवंबर 2016

रिटायर फौजी...

एक समय था जब गाँव का हर नौजवान फ़ौज में जाने को बेताब था। मुझसे भी स्कूल में शिक्षक पूछते की बड़ा होकर क्या बनोगे तो पुलिस ही कहता था। क्योंकि उस वक्त का माहौल वही था। सुबह तीन बजे से ही चिहारो पहाड़ में भीड़ जुटती थी। लोग कहते थे फ़ौज में जाने के लिए शमसान की मिट्टी पैर में लगाना जरुरी है। ऐसा इसलिए कहते थे क्योंकि शमसान के ठीक बगल में वो मैदान था जिसने सैकड़ों फौजियों को तैयार किया। उस वक्त सुबह से लेकर शाम तक जुटने वाली भीड़ के बीच मैंने कई बार ये जानने की कोशिश की कि इन नवजवानों का आखिर प्रेरणास्रोत कौन है? किनसे प्रेरित होकर ये फ़ौज में जाना चाहते हैं। किसी खास शख्स के बारे में पता तो नहीं चला लेकिन इतना जरूर पता चला कि गाँव की गढ़बड़ाती अर्थव्यवस्था और उस वक्त हुआ कारगिल का युद्ध इन युवाओं को खूब प्रेरित किया। उस वक्त मैं बड़े भैया लोग के लिए सिर्फ स्टॉप वॉच ऑफ़ ओन करने का काम करता था और जब मौका मिले 2-4 चक्कर भी लगाता था। उसी दौरान पता चला कि बिहार के कटिहार में आर्मी जवान की बहाली है। खुला दौड़ होगा कोई भी दौड़ सकता है। अचानक से दोस्तों ने तय किया की जाना है। मुझे भी जाने के लिए कहा गया....
ठीक से मुझे वो दिन याद नहीं... लेकिन इतना याद है कि माँ सो रही थी तो उसे बिना जगाये सुबह 3 बजे उससे आशीर्वाद लेकर घर से कटिहार के लिए निकला था। सच पूछिये तो सिर्फ आर्मी बहाली में जाने की बात को लेकर देशभक्ति अंदर उमड़ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे बॉर्डर पर लड़ाई को जा रहे हैं। सुबह-सुबह रांची गाड़ी पकड़कर साहेबगंज पहुंचा। रेलवे स्टेशन पहुँचते ही सामने से वो ट्रेन गुजरने लगी जिससे हमलोगों को जाना था। किसी साथी ने कहा चलो दौड़कर ट्रेन पकड़ते हैं इसी बहाने दौड़ की कुछ प्रैक्टिस हो जायेगी। आगे निकलती ट्रेन के पीछे सभी दौड़ने लगे। कुछ तो ट्रेन पकड़ लिए लेकिन ज्यादातर वही छुट गए। ऐसा लगा जैसे आर्मी भर्ती की ट्रेन ही छुट गयी हो। आधा हिम्मत वही टूट गया। पता करने पर पता चला कि पानी वाला जहाज भी मनिहारी पहुँचाता है। वहां से जाया जा सकता है। शाम करीब 6 बजे कटिहार पहुंचे। कटिहार पहुँचते ही पता चला कि आर्मी की बहाली में जो फोटो लिए जा रहे हैं उसका निगेटिव होना जरुरी है मतलब कंप्यूटराइड फोटो नहीं चलेगा। लेकिन हम ज्यादातर प्रतिभागियों के पास बिना निगेटिव वाला ही फोटो था।
आसपास पता करने से पता चला कि कटिहार में सिर्फ एक ही ऐसा स्टूडियो है जो निगेटिव वाला फोटो देता है। खोजते-खोजते हमलोग वहां पहुंचे। तबतक रात के 8 बज चुके थे और सुबह 3 बजे बहाली के लिए नम्बर लगाना था। लेकिन वहां पहुँचते ही दुकान में मौजूद भीड़ देख ट्रेन के पीछे दौड़ने के बाद जो हिम्मत बचा था वो भी टूट गया। आपको विश्वास न हो लेकिन उस दुकान में 2 हज़ार से अधिक लोग नम्बर लगाये हुए थे..... उसी भीड़ में सर घुसाते हुए आगे बढ़ा स्टूडियो के नजदीक ही जेनरेटर लगा था जो न जाने पिछले कितने घंटो से लगातार चल रहा था। जेनरेटर के नजदीक पहुंचा ही था कि भीड़ अंदर से बाहर की ओर अचानक से आई, लगा मैं नीचे गिरकर दब जाऊंगा खुद को बचाने के लिए मैंने जेनरेटर से धुवां निकालने वाला पाइप पकड़ लिया। पाइप ने मुझे गिरने से तो जरूर बचा लिया लेकिन मजबूत पकड़ ने गर्म पाइप के छाप मेरे हाथों में दे दिया। ऐसा लगा जैसे मेरे हाथों पर कोई आग रख दिया हो। दोनों हाथ उठाये मैं भीड़ से निकला कि कहीं पानी मिल जाये तो हाथों को ठंडक मिले। इस दौरान जलन बढ़ती रही। जब कुछ नहीं मिला तो मुझे अपना हाथ नाली में डालना पड़ा। 10 मिनट तक नाली में हाथ रखने के बाद कुछ आराम मिला। फिर फोटो खिंचवाने की जदोजहद शुरू हुई। 10 बजे के आसपास पैसे देकर रसीद लेने के बाद रात 2 बजे का समय मिला फोटो खिंचवाने का। रात नाले के बगल वाले बरामदे पर ही बीती।
सुबह 3 बजे के आसपास फोटो लेकर फिर कतार में खड़ा हो गया। सीना और लम्बाई नापने के बाद छाती पर नम्बर का मुहर जब आर्मी वालों ने मारा तो लगा आधा फौजी बन गया। इस दौरान शरीर पर सिर्फ चड्डी ही थी। कई और प्रोसेस पूरा करते करते दौड़ के लिए हमलोग तैयार हुए। उस मैदान के 6 चक्कर लगाने थे जो इसपार से उसपार नहीं दिख रहा था। दौड़ की घंटी बजी सभी दौड़ना शुरू हुए। मैं भी उसी भीड़ में था। उस मैदान के बीच में एक सफ़ेद झंडा लगा था जो दौड़ नहीं पा रहे थे उनके आत्मसमर्पण के लिए। 5 चक्कर के बाद मेरे भी दम फूल गए। चाहकर भी पैर आगे नहीं बढ़ा पा रहा था। किसी तरह आगे बढ़ रहा था लेकिन मेरे पहुँचने से पहले रस्सी खींच दिया गया जिसमे कई लड़के गिर पड़े। ये देख अंततः मैंने भी आत्मसमर्पण कर दिया। उसके बाद हम हारे हुए जवान को ढंढे मारकर बाहर किया गया.... बाहर निकलने पर लोग तंज कसते हमें रिटायर फौजी कह रहे थे। एक हाथ में बैग और दूसरे हाथ में चमड़े का जूता लिए पूरा शहर घूमना पड़ा। क्योंकि जूते चाचा के थे बड़े होने के कारन पैर में फोके पड़ चुके थे..... निराश मन से घर लौट आया लेकिन अभी भी फौजी को देखता हूँ तो लगता है और थोडा सा ही दौड़ना था क्यों नहीं दौड़ पाये....


फेसबुक के कमेंट 


Prasenjit Singh कोई बात नही सनी जी देश के अंदर भी बहुत दुश्मन हैं जो देश को अंदर से नस्ट कर रहे हैं ।उसे आप अपने न्यूज़ चैनल के जरिये ख़त्म कर सकते हो।
LikeReply219 May at 06:18
Gautam Kumar aap jo likhtey ho sisa ki thrh saaf njar aata h...yad aa jata h o din....really nice
LikeReply119 May at 10:15
Awadhesh Poddar Nitk Is jajbe ke liye bhi aapko mera salam...........
Mukesh Kumar Joni वाह ! सन्नी भाई गजब.....
Nitesh Ranjan Mishra Aapki lekhni kamaal ki hai.... Padh k maja aa gya.... Great....

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