मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

हाय रे कैटरीना तुमको देख भी नहीं पाए......


२६ फ़रवरी का दिन था। हर दिन कि तुलना में सुबह जल्दी उठा। सुबह ९ बजे तक नहा-धो कर तैयार हो गया। हाँ दिन कुछ खास था क्यूंकि आज कैटरीना का दीदार होने वाला था। मैं पास के चक्कर में इधर-उधर फोन नहीं घुमा रहा था क्यूंकि मेरे पास "ड्यूटी पास" था। अपने लॉज में मैं बड़ा इतरा रहा था। क्यूंकि पूरे लॉज में एकलौता मैं ही था जिसके पास नेशनल गेम का पास था। सभी पूछ भी रहे थे क्या बात है भैया आज बड़ा सवेरे तैयार हो गये हैं। और मैं सीना चौड़ा करके कह रहा था नेशनल गेम वाला प्रोग्राम देखने जा रहे हैं, और साथ ही ये भी जोड़ दे रहे थे कि अरे क्या करे जाने का भी मन नहीं कर रहा हैं लेकिन क्या करें ड्यूटी पड़ा है इसलिए जाना पड़ रहा है। एक बजे घर से निकला। ऑटो से ही जाने का सोचे क्यूंकि पिछले दिनों कि गलतियों का एहसास था। सालों ने मेरा हेलमेट चुरा लिया था। कांटाटोली पहुचे तो पता चला कि इधर से ऑटो जाना आज माना है। क्या करते अब कोई उपाय भी नहीं था कैटरीना को याद किये और पैदल ही चल दिए। पहुँचते - पहुँचते पसीना छुट गया। लेकिन मन ही मन सोचे कि कैटरीना जैसी हसीना को देखेंगे तो सब पसीना सुख जायेगा।

गेट पर पहुँचने से पहले अपना कार्ड निकाले और गला में लटकाके सीना ऊँचा करके मेन गेट कि ओर बढ़े, एक सिपाही बोला इधर कहाँ उधर से जाईये। तभी मुझे इस कार्ड का औकात पता चल गया था. फिर भी हिम्मत नहीं हारा आगे बड़ा तो देखा वीआइपी कार पार्किंग वाला गेट खुला है। धीरे से सुरक्षा को चकमा देते हुए अंदर चले गये। लेकिन अभी और कई घेरे पार करने बांकी थे। किसी तरह अपने आत्मविश्वास को दिखाते हुए अभिमन्यु कि तरह हरेक दरवाजे को पार करते गया. आखिरकर मेन स्टेडियम तक पहुँच गया। मुझे पहले से पता था कि टावर पर मुझे जाने नहीं देगा इसलिए उधर समय जाया न करते हुए नीचे के दरवाजे से मैदान में ही जाने का उपाय करने लगा। आत्मविश्वास से सीना ऊँचा करके ड्यूटी पास लटका कर अंदर जा रहा था कि एक सिपाही ने कहा कि आप लोग को अंदर जाना माना है। फिर भी मैंने अपना मन छोटा नहीं किया। फिर मैं पीछे कि दरवाजे कि ओर गया देखा कि वहां कोई नहीं है। आखिरकर स्टेडियम के अंदर आ ही गया।

अंदर आ गया तो ऐसा लगा मानो मेरा मेहनत सफल हो गया। मैदान के चारो तरफ घूम कर काम कि निगरानी ऐसे करने लगा जैसे आर. के . आनंद मैं ही हूँ। तब तक समय ३:३० हो चुके थे। मैं मन - ही मन सोच रहा था कि कब पांच बजेगा? थोड़े देर में गायक शान आये, बड़ा नजदीक से देखने का मौका मिला । उसने कुछ रिहर्सल भी किया। अब सोचे कि एक कोना पकड़ लेते हैं। एक साइड में जा कर घास पर बैठ गया। तभी अचानक से पुलिस सभी को बाहर निकलना शुरू किया मैं धीरे से इधर - उधर होता रहा। पुलिस से बचते - बचाते आखिर कर प्रोग्राम शुरू हुआ, तब जा कर राहत का साँस लिये कि चलो आखिर कर हम सफल ही हुए। मीडिया गैलरी के नीचे मैदान पर बैठ कर हवा में उड़ते जाबाजों का आनंद लेने लगा। सभी माननीयों का भाषण भी वहीँ से सुना। गुस्सा भी आ रहा था कि किता लम्बा चौड़ा सब भाषण दे रहा है पेपर में छपवा देता सभी लोग पढ़ लेते। मन में बस एक ही हलचल थी कि कब कैटरिना आएगी कहीं कैटरिना के आने के पहले ही मुझे न निकल दे।

घास पर बैठ कर प्रोग्राम का मजा ले रहा था. तभी सिनेयुग वाली एक लड़की आयी और बोली कि ये बैलून पकड़ कर रहो जब सीएम् साहब छोड़ेंगे तो तुम भी छोड़ देना। फिर क्या था अब तो मन ही मन सोच रहा था कि चलो अब तो कोई नहिये निकलेगा। मैं बैलून पकड़ कर स्टेडियम में जा कर खड़ा हो गया। बैलून छोड़ने में भी पूरा इतरा रहे थे क्यूंकि मुझे पता था कि पीछे से मेरे जेनेलिया मुझे देख रही होगी. लेकिन मन ही मन सोच भी रहा था कि इधर देख रही है कि नहीं इसलिए मैं थोड़ा इधर - उधर और बैलून को ऊपर - नीचे कर रहा था कि उसका ध्यान खींच सकों. बैलून छोड़ा आ कर फिर वहीँ बैठ गया. अभी कुछ ही देर प्रोग्राम का मजा लिये थे कि फिर से पुलिस आयी और इस बार मैं बच नहीं पाया। सालों ने बाहर ले जा कर ही दम लिया। हम गिड़-गिडाते रहे लेकिन सालों ने कैटरिना के प्रति मेरे प्यार को समझ नहीं पाए।

अब बाहर निकल कर सोच रहे थे कि क्या करे ? स्टेडियम के तीन - चार चक्कर लगा दिए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब क्या करे सोचने पर मजबूर हो गये। लॉज भी नहीं जा सकता था क्यूंकि वहां तो बहुत लम्बा चौड़ा फेक कर आया था। १० रुपये का बादाम खरीद कर खा रहे थे और सोच रहे थे कि और कुछ देर अंदर रहने देता अब तो कैटरिना भी आ ही जाती। सोच रहा था कि लॉज जाकर क्या बोलेंगे ? कहीं कोई पूछ दिया कि कैटरिना किस रंग का कपडा पहनी थी तो क्या बताऊंगा ?

तभी देखा कि कुछ लोग निकल कर जा रहे हैं। मैं सोचा क्यूँ नहीं इनसे टिकट लेकर अंदर चलूँ। तब शुरू किये टिकेट मांगना। नमस्ते आंटी जी आप तो घर जा रही हैं अपना टिकट दे देती तो मैं प्रोग्राम देख लेता ? फिर क्या था तरह- तरह का बहाना कि नहीं गेट पर चेक करेगा तो, रास्ते में पुलिस वाला पूछ दिया इतनी रात को कहाँ से आ रहे हैं तो। फिर भी निराश नहीं हुआ कई लोगों से मिला लेकिन किसी ने अपना बेकाम का टिकट मुझे नहीं दिया।

अब तो ऐसा लग रहा था मानो मेरे लिये ही इतना पुलिस लगा दिया है कि कहीं हम कैटरिना से मिल न लें। सोच रहा था बेचारी मुंबई से चल कर आयी है और हम देख भी नहीं पाए।

फिर क्या था इधर उधर घुमने लगा। तो देखा कि बहार एक स्क्रीन लगाया है लेकिन वहां भी इतना भीड़ कि आगे जाने कि लिये जी जान लगाना पड़ेगा। आखिर करते भी क्या किसी तरह फिर से वो निकम्मा ड्यूटी पास गला में झुला कर कूदते फान्गते आगे पहुँच गये। अब बैठ कर स्क्रीन पर प्रोग्राम का मजा लेने लगे। और हर चीज़ को याद करने लगे कि कौन कैसे आया, कौन क्या पहना है। क्यूंकि लॉज जा कर सबको बताना था कि मैंने तो एकदम करीब से देखा। लेकिन मन यही कह रहा था। हाय रे कैटरिना तुमको देख भी नहीं पाए ....

लॉज पहुंचे तो सभी मेरे इंतज़ार में ऐसे खड़े थे जैसे मैं कोई युद्ध जीत कर आया हूँ। लेकिन एक बार तो मेरा मन दार भी गया था कि कहीं ये लोग को पता तो नहीं चल गया कि मुझे निकाल दिया था. लेकिन जब उनलोगों ने कैटरीना के बारे में सवाल पूछना शुरू किया तो कुछ राहत हुआ. फिर क्या था सवालों कि झड़ी लगा दिया सबों ने. कदम रखते ही तरह-तरह का सवाल। अच्छा भैया नजदीक से देखने में कैटरीना कैसी लग रही थी। आप कितना नजदीक से देखे? और कई सवाल ...... सभी मेरी आँखों में कैटरीना कि झलक देखना चाहते थे. लेकिन मेरी आँखों में तो था कुछ और.......

कैटरिना कोई बात नहीं हमदोनो मिल नहीं पाए तो क्या हुआ सपने में हम रोज तेरा दीदार करेंगे। और बीती रात तो तुम मेरे सपने में आ भी गयी थी। बस इसी तरह तुम हर रोज मेरे सपने में आती रहना ...