मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

अँगना में आई हमार भौजी !

24 व्यक्तियों का एक संयुक्त परिवार। दादा-दादी, चाचा-चाची, बड़का बाबु-बड़की माई, बड़की दीदी-छोटका भैया सबसे भरा हुआ। सबके अरमानो का व्यंजन एक ही आंच पर एक ही चूल्हे पर पकता। एक ही छत के नीचे सभी स्वप्न के हसीन निद्रा में लीन होते। तो एक ही कमरे में जिंदगी कभी हिचकोले खाते तो कभी सपाट दौड़ते बचपन से करवट लेते लेते जवानी की दहलीज़ की ओर बढ़ता।

समय के काल चक्र में फंस दादा-दादी दूर हो गए। बस उनकी यादें शेष है। जो सुख की हर घडी में उनके होने और न होने के एहसास को हम बाईसों के जेहन में एक साथ आने और जाने को मजबूर करता रहता है। कभी-कभी जुबान से बेबस शब्द फुट ही पड़ते हैं की आज बाबा होते तो कितना खुश होते !

आज जब हम 14 भाई बहन में सिर्फ 6 भाइयों में सबसे बड़े बबलू भैया की शादी है तो फिर हम सब अचानक से 15-20 साल के पीछे की जिंदगी में खो जाते है। जब बाबा कहा करते थे "बिना बबलू के शादी देखले ना मरब। " तभी बाबा थोडा विस्तार से बताते और कहते की बबलू के शादी में हम फलाना कंपनी के धोती पहनब। ऐसे जाइब और वैसे करब। हमसब भाई बहन बाबा के मुख से ऐसा सुन खूब आनंदित होते और मजे लुटते। बाबा के बात को और जोर तब मिलता जब बबलू भैया खुद भी उनकी बातों में हाँ में हाँ मिलाकर उनकी बातों को आगे बढ़ता और कहता - "हम तह एकदम देहात में बिहाह करब। जहाँ न सड़क होई न कोई गाड़ी जाय पारी" तभी बुची दीदी टोकती और पूछती की "तह सोसरारी कैसे जइबे ?" तब तपाक से बबलू भैया फिर से कहता की "हम सोसरारी ना जाइब। सनिया के भेज देब। इहे जाई। अड्डा पर आगे आगे लाल साड़ी और लाल चप्पल पहन के हमार जनानी जाई और पीछे से माथा पर डोलची लेके सनिया। "

दादा - दादी के रहते 2 दीदी की शादी हुई। और उनके गुजरने के बाद फिर 4. लेकिन जब 14 भाई बहनों में पहले भाई की शादी तय हुई तो एक बार फिर सबके अरमान एक साथ जाग उठे। जिन्होंने अब तक अपने उत्साहों से यही सुनकर समझौता किया था की बेटी का शादी है। तभी तो सबसे बड़ी दीदी का बेटा अमन जो अब आठवी में पढ़ने लगा है। डीजे की धुन पर थिरकने को आतुर हुए जा रहा है। पूछने पर कहता है "मामा का शादी है नाचेंगे नहीं।" हम बांकी बचे पांचो भाइयों का समय इसी में व्यतीत हुए जा रहा है की बारात में कैसे क्या करना है। दीदी और माँ लोग साड़ी दर साड़ी और साड़ी के रंग और डिजाईन बदलने में मशगुल है। तो फुआ भी अपनी पतोह और पोते के साथ पहले भतीजे की शादी में मस्त है। तो परिवार की इज्ज़त पर कोई दाग न लगे पापा लोग इसी में व्यस्त है। खाने से लेकर रहने तक पर बारीकी से नज़र रखे हुए।

बारात 19 को निकलने वाली है लेकिन शादी तय होने के साथ ही घर परिवार में उत्सव और त्यौहार का माहौल था। महीनो पहीले से मरम्मती और रंग रोगन का काम चल रहा था। ताकि इस परिवार में आने वाली पहली बहु को कोई कष्ट न हो। अब बस भौजी के पाव इस आंगन में पड़ने ही वाले है। इसलिए बस भौजी से यही उम्मीद है की तिलक में चढ़े कूलर की ठंडी हवा की तरह इस परिवार के मिजाज को भी ठंडक पहुचाते रहे।

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