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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

झारखण्ड का अपने आबा के नाम ख़त।

आबा जोहर !
मैं आपकी बेटी झारखण्ड। बस कुछ ही महीनो बाद मैं तेरह वर्ष की हो जाऊँगी। इन तेरह वर्षों में मैं नौवी बार किसी और की होने जा रही हूँ। घर और बाहर वालों ने मिलकर मेरे लिए लड़का भी चुन लिया है। लड़का है तो कड़क मूंछ, सॉफ्ट नेचर, जीन्स और कुर्ते वाला लेकिन भरी जवानी में भी पप्पा के आशीर्वाद के बिना वो कुछ भी नहीं कर सकता। यह उसका संस्कार नहीं आबा बल्कि उसकी लाचारी है। हलांकि लड़का धीरे - धीरे बाप की राह पर चलते हुए अपनी पकड़ मजबूत करते जा रहा है। लेकिन आबा इससे पहले जितने भी मेरे हुए वे भी अपने दम पर बारात नहीं ला पाए थे इसलिए समय से पहले हर बार मेरा घर उजड़ा। इस बार भी वही हो रहा है। लड़का तैयार है लेकिन उसके दोस्त सगे संबंधी ऑंखें तरेरे हुए हैं। मेरी होने वाली ननद का भी अभी तक इस रिश्ते को समर्थन नहीं मिला है। शायद मेरे दामन पर लगे आठ - आठ तालाक के दाग देखकर वो डरे सहमे हैं। सोच रहे हैं मुझमे ही कुछ खोंट है। लेकिन इसमें मेरी गलती क्या है आबा ? मैंने तो आजतक समझौता ही किया है। जब जिसने चाहा उसके अनुसार खुद को ढाल ली। दहेज़ के नाम पर सबने मुझे अपने अनुसार लुटा लेकिन दाग के छींटे मेरे ही दामन पर पड़े। आबा आज एक बार फिर मेरे नाम पर मंडी सजी है बोली लग रही है। मेरे नाम पर सब अपना मान-सम्मान चाह रहे हैं लेकिन किसी को भी मेरे मान सम्मान की फ़िक्र नहीं है। आबा, दहेज़ के नाम पर कैसे आज भी बेटी आग के हवाले की जाती है, शरीर पर सैकड़ों जख्म सहती है यह देखना हो तो आप मुझे देख सकते हैं। आबा इन सबों ने मिलकर मेरी हालत ऐसी कर दी है की दिल से यही निकलती है की अगले जन्म मुझे बिटिया न बनायो। आबा मैं नहीं चाहते हुए भी नौवी बार किसी और की होने जा रही हूँ। क्यूंकि मुझे पता है की मेरे भाग्य में सिर्फ दुर्भाग्य ही लिखा है।
जोहर !!

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