मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

संथाल परगना !

देश के सबसे पिछड़े 12 जिलों में 6 जिला झारखण्ड के संथाल परगना का है। सरकारी आंकड़े के अनुसार संथाल परगना की 27 फीसदी आबादी शिक्षित है तो 72 फीसदी कोपोषित। देवघर, दुमका, गोड्डा, साहेबगंज और पाकुड़ झारखण्ड के ये 6 जिले ऐसे हैं जो सरकार द्वारा निर्धारित रेड कोरिडोर में आते ही नहीं हैं। मतलब सरकार अभी तक यह मानकर चल रही है की संथाल परगना के ये 6 जिले नक्सलवाद से दूर हैं। इसलिए विकास के नाम पर इस क्षेत्र के लिए न तो कोई विशेष पॅकेज मिलती है और न ही किसी का कभी इस क्षेत्र की और ध्यान ही गया है। जबकि संथाल परगना के एकमुश्त वोटों से ही झारखण्ड में सरकार की रूपरेखा तय होती है। संथाल परगना के वोटों से ही बाप-बेटे और बहु की राजनीति चमकती है। फिर भी संथाल परगना में कुंडली मारकर बैठने वाली पार्टी ने उस क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया। दुमका को उप राजधानी का दर्जा तो दिला दिया पर आज भी उसकी स्थिति किसी सुदूर बदइन्तेजाम गाँव से बेहतर नहीं है। पिछले दिनों जिस-जिस सड़क से महामहिम गुजरने वाले थे सिर्फ उन्ही सड़कों पर अलकतरे और चुने का लेप चढ़ाया गया बांकी की सड़कें आज भी चीख चीख कर पूछ रही है की क्या यही उपराजधानी है ? साहेबगंज गोड्डा और पाकुड़ की स्थिति तो और भी दयनीय है। आज भी वहां के लोग अपनी भूख मिटाने के लिए आम की गुठली को पानी में उबाल कर पीते हैं। चूल्हे की आंच को बुझने नहीं देते क्यूंकि उनके पास माचिस खरीदने के पैसे नहीं........

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