मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 7 जून 2015

हाँ मैं स्ट्रिंगर हूँ !


कुछ दिन पहले की बात है। रांची में ट्रैफिक एसपी खुद से वाहन चेकिंग कर रहे थे। हम भी खबर करने पहुंचे थे। उसी दौरान 2 लड़के मेरे पास आये बोले भैया हेलमेट नहीं था इसलिए पकड़ा गए हैं छुड़वा दीजिये न। मैंने अपना हेलमेट उसे दे दिया। फिर भी बात नहीं बनी लेकिन बाद में पता चला ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था इसलिए बात नहीं बनी थी। लेकिन इतना जरूर हुआ की फाइन सिर्फ डी एल नहीं होने का ही लगा। खबर के बाद मैं ऑफिस चला आया।
करीब एक महीने के बाद मेरे फेसबुक पर एक मैसेज आया। मैं उसे पहचान नहीं पाया। लेकिन उसने मुझे बताया कि मैं वही हूँ जिसकी आपने मदद की थी। मैंने पूछा कैसे खोज लिया तो उसने कहा बस खोज लिए। बात - बात में पता चला की वो पत्रकारिता का छात्र है। फिर बीच बीच में ऑनलाइन बातें होती रही। उसने मुझसे पूछा की रिपोर्टर हैं न ? चुकी वो पत्रकारिता का छात्र था इसलिए वो समझना चाह रहा था कि आप स्ट्रिंगर हैं या रिपोर्टर। मैंने उसे बताया की स्ट्रिंगर हूँ। उसने ओके लिखकर संवाद को बंद कर दिया।
फिर कुछ दिनों के बाद उसने मुझे जी न्यूज़ पर लाइव देखा। और फोटो सहित बधाई लिखकर भेजा। उसके बधाई सन्देश में ये सवाल छुपा हुआ था कि आप रिपोर्टर बन गए क्या ? लेकिन वो ये सवाल पूछा नहीं।
अभी हाल ही में उसका एक मैसेज आया। उसका सवाल था कि क्या कोई लड़का सीधे रिपोर्टर नहीं बन सकता ? पहले स्ट्रिंगर बनकर अपना कैमरा से काम करना ही होगा ? मैं सोच में पड़ गया कि क्या जवाब दूँ। क्योंकि असल बात बता देता तो पत्रकारिता में कदम रख रहे इस लड़के की सोचने और काम करने की क्षमता में बदलाव आ जाता। मैंने कहा ऐसा नहीं है। कोई ऑफिस में चिट्टी छांटते छांटते रवीश कुमार बन जाता है तो कोई सीधे स्टार एंकर रिपोर्टर भी बन जाता है। शुरुवात में थोड़ी दिक्कत और तकलीफ होती है लेकिन सब सूखे पत्तों की तरह झड़ जाता है। उसने फिर पूछा की तो आपका इतने दिनों में कुछ क्यों नहीं हुआ ? मेरे पास जवाब नहीं था। इसलिए रिप्लाय बॉक्स खाली रहा।
कहीं से इंटर्नशीप करके लौटने के बाद उसने कहा मैं आपसे पढ़ना चाहता हूँ। आप जहाँ बुलाइये आ जाऊंगा। आपके जैसा रिपोर्टर बनना चाहता है। सुनकर अच्छा तो लगा क्योंकि पत्रकारिता करते हुए मेरे लिए इससे बड़ा कॉम्प्लीमेंट नहीं हो सकता था। लेकिन मैंने उससे कहा मेरे जैसा नहीं मुझसे अच्छा बनो। और खूब नाम कमाओ। क्योंकि स्ट्रिंगर और रिपोर्टर में फर्क तो तुम समझ ही लिए हो। मैं अभी तक स्ट्रिंगर ही हूँ। स्ट्रिंगर के बारे में एक संपादक ने कहा है - स्ट्रिंगर एक दलित के समान होता है। जिसपर रहम तो हर कोई जताता है लेकिन मदद कोई नहीं करता।

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