रांची के मुक्तिधाम में भीड़ थी, पंडित जी धारा प्रवाह मन्त्र उच्चारण कर रहे थे, दीवारों पर लिखी खुबशुरत लाइने जिंदगी और मौत की खुबशुरत परिभाषा गढ़ रहे थे, परिवार और समाज के शोकाकुल लोगों के चेहरे पर गम की लकीरें थी तो किसी बेटे के कंधे पर माँ-बाप के लौट के न आने की उम्मीदों को तोड़ता उनका जनाजा, तो कोई बेटा अपने भगवान जैसे बाप को एक पुतला मान उसे मुखाग्नि दे रहा था । दरअसल रांची के बरियातू से बैद्यनाथ सिंह ,राधिका देवी ,भीम सिंह ,रवि सिंह और किरण देवी केदारनाथ की यात्रा के लिए गये थे. जो बादल फटने की घटना के शिकार हो गये और अब तक लापता हैं. परिजनों ने उन्हें खोजने की खूब कोशिश की लेकिन निराशा हाथ लगी। जब चार महीने बीत गए सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली और हर एक कोशिश के बाद भी उन्हें नहीं ढुढा जा सका तो घरवाले ने सांकेतिक रूप में उन सभी का अंतिम संस्कार कर दिया। अंतिम संस्कार इसलिए किया गया क्यूंकि गुम हुए लोगों का डेथ सर्टिफिकेट भी नहीं बन पा रहा था जिसके आधार पर बीमा के पैसे मिलने थे. लेकिन हिन्दू धर्म के अनुसार एक बार किसी का अंतिम संस्कार कर दिया तो घर परिवार और समाज उसे मृत मान लेता है. ऐसे में अब इन लापता लोगों में से कोई लौटकर घर भी आ जाता है तो उसे समाज स्वीकार नहीं करेगा। लेकिन इन सब के बीच सवाल उठता है की आखिर वो सरकार कहाँ है जो उस वक्त कई घोशनाए की थी. चार महीनो में सरकार ने अपने स्तर से इन्हें खोजने की प्रयाश क्यूँ नहीं की. मदद के रूप में जो रकम मिलने थे वो आखिर अभी तक क्यूँ नहीं मिले।
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