मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 7 जून 2015

ये VC जरा हटके है !


चमचमाती गाड़ी पर जब लाल- पीली बत्ती चढ़ जाये, आगे पीछे बॉडी गार्ड तन जाए और बीच में खड़ा व्यक्ति अपनी पहचान के लिए गले में पहचान पत्र टांग ले तो देखने में कैसा लगेगा। थोड़ा अजीब तो लगेगा न क्यूंकि गाड़ी पर पद लिखवाकर सायरन की आवाज़ में चलने वालों को अक्सर पहचान की जरुरत नहीं पड़ती। किसी समारोह में ऐसा कर ले तो चलता है लेकिन हर दिन आईकार्ड टांग कर ऑफिस आये अपने चेम्बर में भी उसी स्थिति में भी बैठे तो कौतुहल तो होगा ही। क्यूंकि हम अमेरिकी नहीं झारखंडी हैं।
दरअसल हम बात कर रहे हैं रांची युनिवेर्सिटी के कुलपति डॉ रमेश पाण्डेय के बारे में। अभी कुछ ही दिन पहले वीसी के पद पर विराजमान होने वाले रमेश पाण्डेय इनदिनो काफी चर्चा में हैं। वो अपने कर्मचारियों को समय पर आने का निर्देश नहीं दिए हैं बल्कि हर दिन सुबह आठ बजे खुद अकेले ऑफिस आ जा रहे हैं। पिछले कई सप्ताह से उनके समय से 2 घंटा पहले ऑफिस आने का सिलसिला जारी है। नतीज़तन अब सभी कर्मी 10 बजे तक ऑफिस पहुँच जा रहे हैं। विश्वविध्यालय परिसर का माहौल भी बदल गया है। कल तक विश्वविध्यालय की जो दीवारें पीकदान बनकर रह गयी थी वो आज फुल और गमलों से गुलजार है। खुद हर दिन गले में कुलपति का पहचान पत्र लगाकर आते हैं जिसमे रजिस्ट्रार का हस्ताक्षर होता है। ताकि हर कोई ऐसे ही आये। पाण्डेय जी चाहते हैं कि विश्वविध्यालय को कोर्पोरेट कल्चर में ढालें। लेकिन व्यवस्था को बदलना इतना आसान नहीं क्यूंकि अक्सर व्यवस्था बदलने वाले बदल दिए जाते हैं।

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