मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

रविवार, 7 जून 2015

पॉकेट/थैली/झोला


मॉल में या फिर किसी ब्रांडेड शो रूम में खरीदारी करने के बाद सामान घर लाने के लिए पॉकेट/थैली/झोला के लिए अलग से पैसे देने पड़ते हैं। मामूली सी थैली के लिए ग्राहक को 5 से 15 रुपये तक का भुगतान करना पड़ता है। थैलियों की कीमत से अधिक पैसे तो लिए ही जाते हैं साथ ही उस पर खुद के ब्रांड या फिर दुकान का एड भी दिया जाता है। मलतब जो कम्पनियाँ अपने ब्रांड का प्रोमोशन के लिए लाखों करोड़ों खर्च करती है वही कम्पनियाँ ग्राहक से पैसे लेकर अपने ब्रांड का प्रोमोशन कर रही है। जबकि होना यह चाहिए था कि यदि कम्पनियाँ थैली में अपने ब्रांड का प्रोमोशन कर रही हो तो उसे मुफ्त में दिया जाए या फिर उसकी कीमत कम होनी चाहिए। या नहीं तो उस पर कोई जागरूकता फ़ैलाने वाला विज्ञापन होना चाहिए था। जागो ग्राहक जागो। और अपनी बात उपभोक्ता फॉर्म तक पहुँचाओ।

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