अलकतरे से छलछलाती काली सड़कें और उसपर पड़ी सफ़ेद पट्टी..... सड़क के दोनों
किनारे कमर तक सफ़ेद रंग से रंगे हुए झूमते गाते हरे भरे पेड़.... देख ऐसा
प्रतीत होता जैसे गोड्डा के सरकंडा मोड़ से 19 किलोमीटर तक सफ़ेद धोती और सर
पर पत्तों का मुकुट पहने दोनों हाथ जोड़ कोई हमारा स्वागत कर रहा हो। गाड़ी
जैसे जैसे वारिशतांड़ की ओर बढती है सड़क के किनारे खड़े लोग गाड़ी की ही
रफ़्तार से हर बार अपनी गर्दन को घुमा हर उस चमचमाती कारों पर निगाहें दौडाते हैं जो कलतक इस राश्ते पर झांकी मारने तक नहीं आते थे।
सुंदरपहाड़ी से 3-4 किलोमीटर पहले गाड़ी दाहिने मुड़ती है। जिंदल के कार्यालय और राष्ट्रपति के कार्यक्रम स्थल को चीरती हुई जब हम करीब 3 किलोमीटर आगे बढ़ते है तो कुछ खुबसूरत झोपड़ियाँ दिखती है। मिटटी से बनी झोपड़ियों के दिवार की चिकनाहट और उसपर बनी कलात्मक डिजाईन से गाँव के लोगों की मेहनत और कला का साफ पता चलता है। चापानल पर आदिवासी स्त्रियाँ और बच्चे स्नान करते दिखते हैं। कुछ और आगे बढ़ते हैं तो सड़कों पर महुआ सुख रहा दिखता है। झारखंडी अंगूर को ऐसे सड़कों पर पड़ा देख रहा नहीं जाता कैमरे निकाल इस सुंदर और मोहक तस्वीर को कैमरे में कैद करता हूँ। उसके ठीक बगल में घर के चौताल पर एक व्यक्ति पेड़ की छाल से रस्सी बनाता दिखता है। मेरे मुख से जोहर शब्द फूटते ही सामने बैठा व्यक्ति मुस्कुराकर कहता है जोहर। जब मैं उनसे जानना चाहा की क्या आपकी भी जमीन जिंदल के लोग ले रहे हैं? तो वो कुछ भी कहने से इंकार कर देता हैं। जवाब में सिर्फ इतना मिलता है की जो भी कहेंगे ग्राम प्रधान कहेंगे।
थोड़ी दूर और आगे बढ़ते हैं तो झोपड़ियों के बीच एक खुबसूरत सा घर दिखता है। दूर से ही यह साफ़ हो जाता है की वही ग्राम प्रधान का घर होगा। दरवाजे पर दस्तक देते ही चैन से सो रहे ग्राम प्रधान डॉ श्रीकांत राम निकलते हैं और जिंदल की सराहना करते यही कहते हैं की सभी गाँव वालों ने जमीन अपनी मर्ज़ी से दी है। लेकिन जब ग्राम प्रधान के साथ गाँव वालों से बात करने हम निकलते हैं तो एक भी ऐसा शख्स नहीं मिला जो यह कह दे की उसने जमीन अपनी मर्जी से दी है। कुछ लोग कैमरे के सामने बोले भी तो जिंदल के खिलाफ अपनी भड़ास निकालते दिखे। लेकिन ग्राम प्रधान यही कहकर बात को टालते हैं की अनपढ़ लोग है ज्यादा बोलते नहीं या फिर इन्हें समझ में ही नहीं आता।
तीन दिनों तक गाँव के चक्कर लगाने के बाद यही समझ में आया की जिंदल ने सरकार और प्रशाशन के दबाव में गाँव वालों की जमीन अपने नाम कर ली। अभी तक न किसी को पूरा पैसा मिला न योग्य को नौकरी। अब गाँव वाले जिंदल के कार्यालय से लेकर उपायुक्त कार्यालय तक चक्कर लगा रहे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। क्यूंकि जिंदल ने हर उस जुबान पर गाँधी को खड़ा कर रखा है जिसकी जुबान की समाज में थोड़ी भी इज्ज़त और जोर है।
(वारिशतांड अबतक झारखण्ड के मानचित्र पर कोई मायने नहीं रखता था। गोड्डा जिले के आधे से अधिक ऐसे लोग होंगे जिनके कानो तक इस गाँव के नाम की पुकार नहीं पहुंची होगी। लेकिन अब गोड्डा जिले का यह गाँव सुर्ख़ियों में है क्यूंकि जिंदल ने वारिशतांड में 1320 मेगावाट का थर्मल पॉवर बैठाया है।)
सुंदरपहाड़ी से 3-4 किलोमीटर पहले गाड़ी दाहिने मुड़ती है। जिंदल के कार्यालय और राष्ट्रपति के कार्यक्रम स्थल को चीरती हुई जब हम करीब 3 किलोमीटर आगे बढ़ते है तो कुछ खुबसूरत झोपड़ियाँ दिखती है। मिटटी से बनी झोपड़ियों के दिवार की चिकनाहट और उसपर बनी कलात्मक डिजाईन से गाँव के लोगों की मेहनत और कला का साफ पता चलता है। चापानल पर आदिवासी स्त्रियाँ और बच्चे स्नान करते दिखते हैं। कुछ और आगे बढ़ते हैं तो सड़कों पर महुआ सुख रहा दिखता है। झारखंडी अंगूर को ऐसे सड़कों पर पड़ा देख रहा नहीं जाता कैमरे निकाल इस सुंदर और मोहक तस्वीर को कैमरे में कैद करता हूँ। उसके ठीक बगल में घर के चौताल पर एक व्यक्ति पेड़ की छाल से रस्सी बनाता दिखता है। मेरे मुख से जोहर शब्द फूटते ही सामने बैठा व्यक्ति मुस्कुराकर कहता है जोहर। जब मैं उनसे जानना चाहा की क्या आपकी भी जमीन जिंदल के लोग ले रहे हैं? तो वो कुछ भी कहने से इंकार कर देता हैं। जवाब में सिर्फ इतना मिलता है की जो भी कहेंगे ग्राम प्रधान कहेंगे।
थोड़ी दूर और आगे बढ़ते हैं तो झोपड़ियों के बीच एक खुबसूरत सा घर दिखता है। दूर से ही यह साफ़ हो जाता है की वही ग्राम प्रधान का घर होगा। दरवाजे पर दस्तक देते ही चैन से सो रहे ग्राम प्रधान डॉ श्रीकांत राम निकलते हैं और जिंदल की सराहना करते यही कहते हैं की सभी गाँव वालों ने जमीन अपनी मर्ज़ी से दी है। लेकिन जब ग्राम प्रधान के साथ गाँव वालों से बात करने हम निकलते हैं तो एक भी ऐसा शख्स नहीं मिला जो यह कह दे की उसने जमीन अपनी मर्जी से दी है। कुछ लोग कैमरे के सामने बोले भी तो जिंदल के खिलाफ अपनी भड़ास निकालते दिखे। लेकिन ग्राम प्रधान यही कहकर बात को टालते हैं की अनपढ़ लोग है ज्यादा बोलते नहीं या फिर इन्हें समझ में ही नहीं आता।
तीन दिनों तक गाँव के चक्कर लगाने के बाद यही समझ में आया की जिंदल ने सरकार और प्रशाशन के दबाव में गाँव वालों की जमीन अपने नाम कर ली। अभी तक न किसी को पूरा पैसा मिला न योग्य को नौकरी। अब गाँव वाले जिंदल के कार्यालय से लेकर उपायुक्त कार्यालय तक चक्कर लगा रहे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। क्यूंकि जिंदल ने हर उस जुबान पर गाँधी को खड़ा कर रखा है जिसकी जुबान की समाज में थोड़ी भी इज्ज़त और जोर है।
(वारिशतांड अबतक झारखण्ड के मानचित्र पर कोई मायने नहीं रखता था। गोड्डा जिले के आधे से अधिक ऐसे लोग होंगे जिनके कानो तक इस गाँव के नाम की पुकार नहीं पहुंची होगी। लेकिन अब गोड्डा जिले का यह गाँव सुर्ख़ियों में है क्यूंकि जिंदल ने वारिशतांड में 1320 मेगावाट का थर्मल पॉवर बैठाया है।)
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