आँखों
को सुकून और चेहरे पर मुस्कान बिखेरनेवाली यह तस्वीर है झारखण्ड के घोर
नक्सल प्रभावित खूंटी जिले की। PLFI का गढ़ माने जाने वाले खूंटी की तस्वीर
अब बदल रही है। बच्चों के शरीर पर सरकारी पोशाकें दिखने लगी है, जुबान से
किताबी भाषा फूटने लगी है, कंधो पर
किताबों के झोले टंगने लगे हैं और हाथों में कलम ने जगह ले ली है। हालंकि
अभी भी यह एक सीमित दायरे तक ही सम्भव हो पाया है। बहुत से इलाके अभी ऐसे
हैं जहाँ के लोग विकास की किरणों को निहारने के लिए सरकारी सवेरा होने का
इंतज़ार कर रहे हैं।
वह खूंटी ही था जहाँ कुंदन पाहन नाम का सिक्का चलता था। वह खूंटी ही था जहाँ सरकारी कर्मचारी जाने से पहले घर वाले से आशीर्वाद लेते थे और पुलिस सौ बार सोचती थी। लेकिन समय के चक्र ने खूंटी के समय को भी बदल दिया है। विकास में पिछड़े खूंटी को बदलने में हर ओर से प्रयास की गई और नतीजा सबके सामने है। सरकार वहां नोलेज सिटी बनाने की बात कर चुकी है। देश और विश्व स्तर के कालेज और विश्वविध्यालय के छात्र छात्राएं आज यहाँ शोध करने आते हैं। बाहर से आई लड़कियां बेपरवाह होकर महीनो तक जंगलो में रहती है। सुरक्षा के व्यापक इन्तेज़ामात हैं। सरकार हर उस सुविधा को पूरा करने में थोड़ी ज्यादा तत्पर दिखती है जिसके अभाव में ग्रामीणों ने हथियार उठाये थे। अधिकारी समय पर कार्यालय आये इसके लिए उपायुक्त ने प्रखंड कार्यालय तक में बायो मैट्रिक सिस्टम लगवा दिया है। सभी अधिकारीयों को रात में खूंटी में ही रुकने का निर्देश है। अधिकारी रांची न भाग आये इसके लिए रांची खूंटी मार्ग पर नाकेबंदी की जाती रही है ..... शायद इतने प्रायशो का ही नतीजा है की खूंटी अब शांत है।
यानि की मतलब साफ़ है अगर थोडा भी विकास चाहिए तो पहले धमाके करो और अपने क्षेत्र को घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित करवाओ। तब शायद सरकार की ध्यान आपके क्षेत्र की ओर पड़ेगी। नहीं तो संथाल परगना की तरह ही उपेक्षित रह जायेगा आपका क्षेत्र। हालाँकि अब तक शांत रहने वाले संथाल परगना की धरती पर भी धमाके होने शुरू हो चुके हैं। नक्सलियों ने अपनी जोरदार दस्तक संथाल की धरती पर पाकुड़ में हुए धमाकों के साथ दे दी है। इस धमाके ने संथाल परगना की विधि व्यवस्था की स्थिति पर से पर्दा उठा दिया है। यह भी बता दिया है की कैसे वहां के जनप्रतिनिधि वहां से वोट बटोर कर रांची में डील करते हैं। जनता बेहाल पड़ी है और नेता जी राजधानी में पढ़कर मालामाल हुए जा रहे हैं। प्रखंड से लेकर जिले तक नेता जी अपने पसंद के अधिकारीयों को रखवाते हैं और अपनी मर्जी से काम करवाते हैं। शायद यही सब वजह है की मेहनतकश संथाल के लोग भी अब बन्दुक थामने को विवश हैं और निर्दोष पुलिस वाले अपने प्राणों की आहुति देने को मजबूर हैं।
वह खूंटी ही था जहाँ कुंदन पाहन नाम का सिक्का चलता था। वह खूंटी ही था जहाँ सरकारी कर्मचारी जाने से पहले घर वाले से आशीर्वाद लेते थे और पुलिस सौ बार सोचती थी। लेकिन समय के चक्र ने खूंटी के समय को भी बदल दिया है। विकास में पिछड़े खूंटी को बदलने में हर ओर से प्रयास की गई और नतीजा सबके सामने है। सरकार वहां नोलेज सिटी बनाने की बात कर चुकी है। देश और विश्व स्तर के कालेज और विश्वविध्यालय के छात्र छात्राएं आज यहाँ शोध करने आते हैं। बाहर से आई लड़कियां बेपरवाह होकर महीनो तक जंगलो में रहती है। सुरक्षा के व्यापक इन्तेज़ामात हैं। सरकार हर उस सुविधा को पूरा करने में थोड़ी ज्यादा तत्पर दिखती है जिसके अभाव में ग्रामीणों ने हथियार उठाये थे। अधिकारी समय पर कार्यालय आये इसके लिए उपायुक्त ने प्रखंड कार्यालय तक में बायो मैट्रिक सिस्टम लगवा दिया है। सभी अधिकारीयों को रात में खूंटी में ही रुकने का निर्देश है। अधिकारी रांची न भाग आये इसके लिए रांची खूंटी मार्ग पर नाकेबंदी की जाती रही है ..... शायद इतने प्रायशो का ही नतीजा है की खूंटी अब शांत है।
यानि की मतलब साफ़ है अगर थोडा भी विकास चाहिए तो पहले धमाके करो और अपने क्षेत्र को घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित करवाओ। तब शायद सरकार की ध्यान आपके क्षेत्र की ओर पड़ेगी। नहीं तो संथाल परगना की तरह ही उपेक्षित रह जायेगा आपका क्षेत्र। हालाँकि अब तक शांत रहने वाले संथाल परगना की धरती पर भी धमाके होने शुरू हो चुके हैं। नक्सलियों ने अपनी जोरदार दस्तक संथाल की धरती पर पाकुड़ में हुए धमाकों के साथ दे दी है। इस धमाके ने संथाल परगना की विधि व्यवस्था की स्थिति पर से पर्दा उठा दिया है। यह भी बता दिया है की कैसे वहां के जनप्रतिनिधि वहां से वोट बटोर कर रांची में डील करते हैं। जनता बेहाल पड़ी है और नेता जी राजधानी में पढ़कर मालामाल हुए जा रहे हैं। प्रखंड से लेकर जिले तक नेता जी अपने पसंद के अधिकारीयों को रखवाते हैं और अपनी मर्जी से काम करवाते हैं। शायद यही सब वजह है की मेहनतकश संथाल के लोग भी अब बन्दुक थामने को विवश हैं और निर्दोष पुलिस वाले अपने प्राणों की आहुति देने को मजबूर हैं।
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