मेरे बारे में

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झारखण्ड के रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का छात्र हूँ ! आप बचपन से ही भावुक होते हैं ! जब भी आप कोई खबर पढ़ते-सुनते हैं तो अनायास ही कुछ अच्छे-बुरे भाव आपके मन में आते हैं ! इन्हीं भावो में समय के साथ परिपक्वता आती है और वे विचार का रूप ले लेते हैं! बस मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है! कलम काग़ज से अब तसल्ली नहीं होती ! अब इलेक्ट्रॉनिक कलम की दुनिया भाने लगी है !

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

पढ़कर क्या करेगा साहब पढने से आदमी बईमान हो जाता है।

ये तस्वीर है जमीन से हजारो फीट ऊपर पहाड़ो पर बसे साहेबगंज जिले के दीवाना बस्ती की। 27 घरों की इस बस्ती में पहाड़िया जाति के 60-70 लोग रहते हैं। जिनकी अपनी सरकार है और ये खुद अपनी बस्ती के प्रखंड विकास पदाधिकारी भी हैं। झारखण्ड और भारत सरकार नाम के किसी भी व्यवस्था से इनका कोई वास्ता नहीं। न सरकार के नुमाईन्दे इनके द्वार तक जाते हैं और न ही ये सरकार की निकम्मी व्यवस्था के आगे हाथ फ़ैलाने। बांस बल्ली मिट्टी और खपड़ेल के सहारे खड़े इनके घरो की नीव भले ही कमजोर हो लेकिन इनके इरादे काफी मजबूत हैं। तभी तो दिखावटी दुनिया से अलग अपनी एक अलग समाज बसा रखा है। टेडी मेडी सकरी और घनघोर जंगलो के रास्ते से होते हुए जब मैं ऊपर चढ़ रहा था तो रास्ते में चंदा पहाड़िया नाम का व्यक्ति मिला। उसने बताया की बस्ती के लोग महीने दो चार महीने में एक बार नीचे उतरते हैं। जब कोई बीमार पड़ जाता है तो ऊपर ही जड़ी बुटी से इलाज करते फिर भी नहीं बचता तो ऊपर ही दफना दिया जाता है। मैंने पूछा और बच्चों की पढाई ? पढ़कर क्या करेगा साहब पढने से आदमी बईमान हो जाता है। अफसर लोग को देख रहे हैं न। इसलिए जबतक अनपढ़ है तबतक ठीक है। कम से कम बस्ती की इज्ज़त बची है। और वैसे भी यहाँ कौन सा स्कूल है। नीचे उतरेगा तो बहक जायेगा। चन्दा बता रहा था ऊपर ही खाने के सामानों की अच्छी खेती हो जाती है। बस मिट्टी के बर्तन में बनाते हैं और झरने का पानी पीकर मस्त रहते हैं। ढोल नगाड़ा सब ऊपर रखे हैं जब जी करता मन भर बजाते हैं और दम भर नाच लेते हैं। क्या कीजियेगा साहब हम बस्ती वाले का जीवन तो इसी में बीत रहा है की कैसे आज के भोजन का इन्तेजाम हो जाये बस। इसलिए नीचे वाले हमलोग के बारे में कहते हैं ये सब आदमखोर है। जो ऊपर जाता है उसे मारकर खा जाता है। बताइए साहब ऐसा रहता तो आपको लौटकर जाने देते। मैंने मन ही मन कहा सचमुच आपलोग ऊपर वाले हो और यह आपका बस्ती नहीं स्वर्ग है। मन कर रहा था संसार के मोह माया से दूर इसी दुनिया में बस जाऊ।

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