गोल्ड मेडलिस्ट मुनिता कुमारी से बात करते हुए मै ! |
तंगहाली के दौर से लड़ते हुए अपनी मुकाम को हाशिल करने का जज्बा गिने चुने लोगों को नशीब होता है। क्यूंकि मुश्किल दौर में अक्सर हिम्मत जवाब दे देता है और उम्मीदे दम तोड़ देती है। लेकिन जो विपरीत परिस्थिति में भी खुद को संभाल लेता है और तमाम रुकावटों को दरकिनार कर आगे बढ़ता है वही मुक्कदर का सिकंदर कहलाता है।
रांची विश्वविध्यालय के चकाचौंध भरे 27 वें दीक्षांत समारोह में वैसे तो 38 मेहनतकश छात्र छात्राओं के गले में सोने का मेडल टंगा और उनका चेहरा पुलकित हुआ लेकिन इस भीड़ में एक ऐसी लड़की दिखी जिसकी आँखें मेडल पाते ही छलक उठी। गुमला जिले के डुमरी प्रखंड के गरीब और मजदुर परिवार से आने वाली मुनिता कुमारी रांची में रेज़ा कुली का काम कर पढाई कर रही है। मुनिता को कुडुख में गोल्ड मेडल मिला।
नक्सल प्रभावित इलाके से राजधानी में पढाई करने पहुंची मुनिता महीने में एक सप्ताह रेज़ा का काम करती है और फिर अपने पढाई पूरी करती है। राजधानी रांची के कई आलीशान मकान मुनिता के मेहनत के गवाह हैं जहाँ उसने अपना खून और पसीना सिर्फ इसलिए बहाया क्यूंकि आज का यह सपना उसके आँखों में उस वक़्त बसता था।
काश मुनिता के तरह ही सपनो को हकीकत में बदलने का यह जज्बा झारखण्ड के सुदूर गाँव में बसने वाले उन लाखों बेटियों के लिए एक रौल मॉडल हो जो गरीबी तंगहाली और समाज के पिछड़ेपन के कारन अपने सपने को अँधेरे में दफ़न कर देती है। मेरा सलाम है मुनिता के इस जज्बे को और पैगाम है मुनिता के रस्ते पर चलने वाली उन तमाम बेटियों को जो अपनी सफलता से झारखण्ड का नाम गर्व से ऊँचा करेगी।
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