साईकिल का आज दूसरा महिना कम्प्लीट हो गया. ये सफ़र जैसे – जैसे लम्बा हो रहा है कई लोग मिल रहे हैं. साईकिल के इसी सफ़र में IICM के प्रोफ़ेसर संजय सिंह मिले. उनकी बातें बिलकुल शहद की तरह मीठी और पानी की तरह एकदम साफ़. आप इन्हें सबसे बेहतर कम्युनेकेटर भी कह सकते हैं. मोहल्ले से लेकर देश विदेश के आर्थिक या अन्य मसले पर आपको समझा दिए तो समझिये आपके पास कोई काउंटर सवाल नहीं रहेगा. CCL में साईकिल पर स्टोरी करते वक्त इनसे मुलाकात हुई थी. ये केजी 1 और केजी 2 क्लास के बच्चों को साईकिल का महत्व बता रहे थे. बच्चे भी ठहाकों के साथ इनसे सीधे जुड़ रहे थे. सवाल जवाब भी कर रहे थे. फ्रोफेसर संजय सिंह हरमू से कांके अपने ऑफिस साईकिल से जाते हैं. ये कहते हैं कि देखिये संस्कार जीन से ही आता है. आप जो करेंगे आपके बच्चे भी वहीँ करेंगे. मैं अमूल का दूध पिता था मेरा बेटा आज भी अमूल का ही दूध पिता है. मैंने पूछा कि सर ये बताइए कि जब एक रिक्शा वाला भी साईकिल आगे करने पर डांट देता है. कार वाला विंडो शीशा निचे कर झाड़ते हुए साइड चलने को कहता है तो बुरा नहीं लगता, तो कहते हैं देखिये यही तो साईकिल का सन्देश है. साइकिल आपको हम्बल बनाता है. विनम्र बनाता है. आपको बताता है कि देखिये आप कुछ नहीं है आप जिसपर सवार थे वही सबकुछ था. इसलिए आप दुसरे से डांट फटकार सुनकर भी बौखलाते नहीं. मुस्कुरा कर निकल जाते हैं.
तस्वीर ऑफिस से घर जाते वक्त रात के 9 बजे की है. तस्वीर ली है मेरे सहकर्मी Arun Kumar जी ने जो खुद हर दिन साइकिल से ऑफिस आते हैं.
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